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Beyond
Times
Random Thoughts ...
This blog is about expressing and sharing thoughts which are not structured and can be termed as random. Randomness has its own charm and beauty which is often nostalgic and Beyond Times.
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माघ का महीना
माघ का महीना ... रात्रि का अंतिम प्रहर ... हर ओर पसरा नीरव स्याह अंधेरा | घने वृक्षों का झुरमुट असीम आकाश मे छिटके तारों की झिलमिलाहट |...

Manoj Mittal
Feb 72 min read


हवा का मासूम झोंका
शाम पेड़ की फुनगियों पर उतर आई थी, अनमना सूरज भी थक डूबने को था | परिंदे घोंसलों की ओर लौट चले थे, यादों के साये भी लंबे होने लगे थे | ...

Manoj Mittal
Jan 262 min read


सूरज भी निकले तो सही
पूस की कांपती सर्द सुबह है... कोहरे में खोए हैं पेड़ भी धुँधलका भी अभी गया नहीं ठिठुरी सी है खंबे की रोशनी कुत्ता भी सोया है गाड़ी के नीचे...

Manoj Mittal
Jan 161 min read


स्पर्श तुम्हारा
मिले भी हो, तो ज़िंदगी की उतरती शामों मे | कहाँ रह जाती हैं चाहतें भी तब तक ? ज़िंदगी की थकन भी अक्सर खो जाती है चेहरे की गहराती सिलवटों...

Manoj Mittal
Dec 30, 20242 min read


है ये अख्तियार तुम्हें
याद करूँ तुम्हें या याद किया जाऊँ ये कहाँ अख्तियार मुझे | भूल जाऊँ तुम्हें या भुला दिया जाऊँ ये भी कहाँ अख्तियार मुझे | रहूँ ख्यालों में...

Manoj Mittal
Dec 12, 20242 min read


मिलकर ही सही
सुरमई है आसमान- आओ,ख्बाब कोई सतरंगी बुनें | खनखनाती हंसी की सरगम पर गीत कोई नया लिखें | भोर के उजास में तारों को फिर से गिनें | रात के...

Manoj Mittal
Nov 24, 20242 min read


राम का इंतजार
रात्रि का प्रथम प्रहर झिलमिलाती रंगबिरंगी रोशनियाँ जगमगाते घर,बाज़ार,चौक और चोबारे दुबका था अंधेरा कहीं कोने में | सजे संवरे सुंदर चहकते...

Manoj Mittal
Oct 29, 20242 min read


कहाँ गुम हो गए बापू
कहाँ गुम हो गए बापू ? तुम एक शाश्वत विचार थे एक नई सोच थे अशक्तों की आवाज़ थे देश की स्पंदना और जनमानस की चेतना थे | कहाँ गुम हो गए बापू...

Manoj Mittal
Oct 1, 20242 min read


जीवन यात्रा
बीता जीवन- सोचते विचारते क्या है जीवन और जीवन यात्रा ? साँसों के आने से साँसों के जाने तक साँसों की सिर्फ एक आदत ? मृत्युलोक मे आने से...

Manoj Mittal
Sep 17, 20241 min read


यादों की यादें
गुजरा मै जब यादों की गुज़रगाहों से तो बिसरी यादों की बहुत याद आई | दिखा तन्हा बेबस और जर्जर वो मकान जो कभी बेहनूर था मेरी खुशियों का पनाहगार | खड़ा था सूखा बेरंग वो दरख्त टकते थे शाखों पे जिसकी हरदम मेरे सपनों के लम्हे | सब्ज़ था जो कभी वो बाग था ना वो अमराई सूखे पत्तों में छुपाये उन आमों की बहुत याद आई | आसमाँ -दिन मे था जो आसमानी रात ढले - सितारों जड़ी चादर सा अपने हिस्से के उस आसमाँ की बेहद याद आई | आँगन में उतरती शाम की बेजान धूप तो थी पर कहाँ गुम थी खिलखिलाती वो

Manoj Mittal
Sep 9, 20242 min read


चरागों का सफर
कविता लिखना - समन्दर में डूब खूबसूरत सीपियाँ ढूँढ लाने जैसा है | समन्दर ,गहरे पानी का हो या तुम्हारी खोई खोई सी आखों का या चाहे बंद...

Manoj Mittal
Jul 17, 20241 min read
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