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Beyond
Times
Random Thoughts ...
This blog is about expressing and sharing thoughts which are not structured and can be termed as random. Randomness has its own charm and beauty which is often nostalgic and Beyond Times.
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तुम्हें ढूँढ ही लेता हूँ
कदमों की पदचापों से पहचान लेता हूँ साँसों के उच्छ्वास–निःश्वास से जान लेता हूँ आँखों की नमी से मन को भांप लेता हूँ मदहोश हवा में- ख़ुशबू तुम्हारी ढूँढ ही लेता हूँ | सर्दियों की शामें अक्सर सूनी होती हैं सर्द अँधेरों में समाने को विवश होती हैं सन्नाटों की चादर ओढ़ रातें भी सोती हैं सन्नाटों की दरारों में- तुम्हें मगर दूँढ़ ही लेता हूँ | फ़ासला मुझसे कितना ही चाहे रखा करो भुलाने का भी कितना ही जतन करा करो या दूर कितना ही क्यों न चली जाया करो यादों के झुरमुटों में- तुम्हें मगर

Manoj Mittal
15 hours ago2 min read


लौटूँगा जरूर..
दिगभ्रमित भटकाती राहें, तल्ख ज़माने की तपाती धूप, नाकामियों की सोई थकन, लंबी तन्हा रातों के वो रतजगे, रुपहले सपनों की खलिश , रूह की अनकही सी बेचैनी, हर लम्हा एक नई आज़माइश । झिलमिलाती ख्वाहिशों की तलब , जुस्तजू मे - सदियों का कारवां, रख्त-ए-सफर में यादों की पोटली, रुखसती में छलकती वो आँखें, तपते रेगिस्तान का असीम समंदर, गर्द-ए-गुमां का वो गुबार, तलाश में लौट आतीं सारी उम्मीदें, गेसूओं के साये की गहरी हसरतें , उद्वेलित मन... युगों की प्यास... ओह मृगतृष्णा ! झीने आँचल क

Manoj Mittal
Oct 172 min read


हवाओं जरा धीमें चलो
हवाओं जरा धीमें चलो पत्तों पर अटकी हैं शबनमी बूंदे सहमी हैं ...और बेचैन भी पलकों पे अटके आंसुओं की तरह कहीं ढलक ना जाएँ ... बाहुपाश में...

Manoj Mittal
Oct 32 min read


अपने अपने अँधेरे
अमावस्या की रात्रि का घनेरा कहीं झिलमिलाता आशा का कंदील दिव्य दीपक का दीप्तिमान आलोक- भटकी राह का पथ प्रदर्शक तिल तिल जल- पर स्वयं अँधेरे...

Manoj Mittal
Sep 52 min read


सुनो तो सही
सुनो तो सही ! हिमनदों के पिघलते सन्नाटे बेसब्र नदी के टूटते पाट दरकते पहाड़ों के रिसते घाव धँसती इमारतों के वजनी बोझ बरसातों में थमती...

Manoj Mittal
Aug 152 min read


Zamane ka Chasma
ज़माने का चश्मा The poem challenges the perception shaped by societal norms and expectations, urging readers not to view the world through...

Manoj Mittal
Jul 242 min read


Inescapable Reflections
जरूरी नहीं जरूरी नहीं कि तुम याद करो मुझे भुला भी कहाँ पाओगी | बेशक लबों से ना बयान करो जज़्बातों को आँखों से ना छुपा पाओगी | फासला...

Manoj Mittal
Jul 192 min read


The Shadow of my Existence
मेरे वज़ूद की परछाई कविता वह पुल है जो हृदय से हृदय तक जाता है, बिना किसी शोर के। कविता केवल शब्दों का खेल नहीं होती- यह एक गहन अनुभव...

Manoj Mittal
Jul 56 min read


श्वासों थमो जरा
जी वन निरंतर गति है — हर पल साँसों की लय में बंधा हुआ। पर क्या कभी हमने उस लय को विराम देने की इच्छा की है? यह कविता एक आत्मा की पुकार...

Manoj Mittal
Jun 182 min read


माटी का लोंदा
Click on video to listen. Sound starts at 6 seconds माटी का लोंदा था वो भर अंजुरी में स्नेह से अभिसिंचित कर नाज़ुक उंगलियों ने तराशा...

Manoj Mittal
May 302 min read


पर आज निकला है दिन
जेठ का अंधड़ है और उड़ता है भयावह बवंडर बेख्याली मे बेखबर बेसुध हूँ मैं जरूरी नहीं सूरज छुपने से रात हो ही खुद का खुद तक लौटना है जरूरी ...

Manoj Mittal
May 132 min read


हवा मुद्दतों में चली है वहाँ
हवा मुद्दतों में चली है वहाँ दिल के गोशे गोशे में मगर हलचल हुई है यहाँ | अमावस्या का घनेरा है वहाँ स्निग्ध चाँदनी सा स्नेहिल चेहरा मगर झाँकता है यहाँ | ग़ज़ल एक किसी ने कही है वहाँ दीदार-ए-ग़ज़ल की मगर ख्वाहिशें हैं यहाँ | दर्द-ए-सुर में डूबे हैं लफ़्ज़ वहाँ महफ़िल-ए-सुखन में मगर दादें बटोरतीं हैं नज़्मे यहाँ | धूप में बरसती तपिश बहुत है वहाँ पेशानी की सलवटों में मगर पसीने की बूंदें अटकी हैं यहाँ | हिज़्र की रातों में रोया है दिल वहाँ आशियाना-ए-इश्क मगर खाक हुआ है यहाँ |

Manoj Mittal
May 22 min read


लगता है यों कभी..
लगता है यों कभी ठिठक सी गई है ज़िंदगी तन्हा रास्तों पर मील के पत्थर सी शायद देना चाहती है दस्तक मन को उतर आई हो शाम- ज़िंदगी की पगडंडीयों...

Manoj Mittal
Apr 122 min read


क्यों है ?
खिला है दिन पर उजियारे में पसरा अंधेरा क्यों है ? लजाती हँसी में उदासी का ये सबब क्यों है ? ताज़ा खिला है गुलाब काँटों में लेकिन अटका...

Manoj Mittal
Apr 52 min read


नाज़ुक नन्ही कली
एक नाज़ुक नन्ही कली हो तुम चाहा था- प्यार से पल्लवित कर पुष्पित करना तुम्हें | परन्तु- ज़िंदगी की तपिश में मुरझा सी गई हो नाज़ुक हो,कुम्हला...

Manoj Mittal
Mar 152 min read


फाग की सरगम
वक्त की कोख में ज़िंदगी लेती है हसरतें और मुस्कुराती है जाती सर्दीयों में सुनहरी धूप सी |...

Manoj Mittal
Mar 52 min read
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