फाग की सरगम
- Manoj Mittal
- Mar 5
- 1 min read

वक्त की कोख में ज़िंदगी लेती है
हसरतें
और मुस्कुराती है
जाती सर्दीयों में सुनहरी धूप सी |
फाल्गुन है
हवा में मदहोशी सी छायी है |
थिरकतें हैं पीपल पर पत्ते
तुमने जो फाग की सरगम बजाई है |
एक ख्याल सा जरा गुजरा है अभी..
चुरा के वक्त-
लम्हों से लिखूँ दास्तान-ए-ज़िंदगी |
न भी बताओ-
तो भी पूँछ लूँ उदासी का सबब |
मंजूर तुम्हें हो अगर-
गुनगुनाऊँ मैं भी मुहब्बत की सरगम |
ढूंडू आसान जबाब मुश्किल सवालातों के..
यौवन की अल्हड़ अंगड़ाइयों के
अनलिक्खे खतो के मजमूनों के
तन्हा रातों की गहरी मायूसियों के
और धुँधलातीं नज़रों में
उन अनदेखे सपनों के |
मदहोशी मे ही सही
हसरतों ने करवटें लीं हैं..
थिरकता है मन पीपल के पत्तों सा..
चाहता हूँ लिखूँ प्यार के तराने
और उकेर लूँ ख्वाहिशों को भी
मन के उजले कागज़ पर |
फाल्गुन है..
सुनहरी धूप है ...
फाग की सरगम भी तुमने बजाई है |
फाग- होली के अवसर पर गाए जाने वाले गीत
मजमून- विषय-वस्तु / सार
[मनोज मित्तल,नोएडा, 5 मार्च 2025]

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