स्पर्श तुम्हारा
- Manoj Mittal
- Dec 30, 2024
- 1 min read
Updated: Jan 30

मिले भी हो, तो
ज़िंदगी की उतरती शामों मे |
कहाँ रह जाती हैं
चाहतें भी तब तक ?
ज़िंदगी की थकन भी अक्सर
खो जाती है
चेहरे की गहराती सिलवटों में |
धीमी होती नजरें अक्सर
टटोला करती हैं
वक्त की दरारों से आती आहटों को |
मन के घने कुहासे में
समाए होते हैं
उदासियों के लंबे साये |
दिल का जो दामन खाली था
उसमे आज
सुरमई साँझ सिमट आई है |
टिमटिमाता है कोई सूरज पहाड़ियों से
उतरा है चाँद भी जैसे बादलों से
और बरसती है चाँदनी
भिगोने मन को |
न जाने क्यों लगता है
मन का कुहासा छटने लगा है
उदासियों के साये भी सिमटने लगे हैं
शायद
पा स्पर्श तुम्हारा |
[मनोज मित्तल , नोएडा, 29 दिसंबर 2024]
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