है ये अख्तियार तुम्हें
- Manoj Mittal
- Dec 12, 2024
- 1 min read

याद करूँ तुम्हें या
मैं याद किया जाऊँ
ये कहाँ अख्तियार मुझे |
भूल जाऊँ तुम्हें या
भुला दिया जाऊँ
ये भी कहाँ अख्तियार मुझे |
रहूँ ख्यालों में तुम्हारे या
ख्यालों में मैं सजाऊँ तुम्हें
है ये कहाँ अख्तियार मुझे |
बसा के रखूँ रूह में अपनी या
विस्मृत हो जाऊँ स्मृतियों से
ये कहाँ अख्तियार मुझे |
सपनों मे आया करूँ या
सोचूँ सपनों में तुम्हें
ये कहाँ अख्तियार मुझे |
बेवफाई तस्लीम कर लूँ या
मैं ही बफा ना निभाऊँ
ये भी कहाँ अख्तियार मुझे |
काजल लगाओ या
आसूओं मे बहा दो उसे
है ये कहाँ अख्तियार मुझे |
सासों की आदत में शुमार रहो या
मैं ही तुम्हारी नब्जों में धड़कूँ
ये भी कहाँ अख्तियार मुझे |
मेरी ज़िंदगी की ताबीर हो तुम
मानो या ना मानो
है ये अख्तियार तुम्हें |
अख्तियार- अधिकार/ वश मे , तस्लीम- स्वीकार , ताबीर- सपना/स्वप्न
[मनोज मित्तल , नोएडा, 12 दिसंबर 2024]

आप तो सचमुच छुपे हुए multi-talented कलाकार हो।
लाखों लाखों बधाईयां और शुभकामनाएं।