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शोर

  • Writer: Manoj  Mittal
    Manoj Mittal
  • Jan 25, 2024
  • 1 min read

Updated: Jan 29









शोर बहुत है जमाने में

कुछ सुनता है कानों को

और कुछ दिल और दिमाग को |


जमाने पे काबू नहीं

क्या बयान करें शोर की

सुनो तो शोर पढ़ो तो शोर

और देखो तो शोर |


अब इंतहा हो गई है शोर की |

खयालों की भी है एक खूबसूरत दुनिया

सुन लो,कह लो और देख लो

कभी भी,कुछ भी ,किसी को भी और कैसे भी

अपनी कहानी अपने किरदार अपने रंग

और अपनी ही आवाज़ |


उलझे खयालातों को सुलझाने में अक्सर

और उलझ जाते हैं उलझे खयालात

जैसे फस जाते है

स्वेटर की बुनाई में फंदे |


शोर सन्नाटे का होता है भारी

पर क्या कभी सुना है दिल का सन्नाटा

ग्लेशियर की जमी बर्फ सा

पिघलने को आतुर

आस में एक गर्माहट का |


इंतजार है जमाने के शोर में

एक ऐसी आवाज़ का

जिसे

सुनने को ललकते है अक्सर

कान, आँख, दिल और दिमाग |



( मनोज मित्तल , नोएडा , जनवरी 25, 2024)




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