जरूरी नहीं
- Manoj Mittal
- Nov 5, 2024
- 1 min read
Updated: Dec 6, 2024

जरूरी नहीं कि तुम याद करो
मुझे भुला भी कहाँ पाओगी |
बेशक लबों से ना बयान करो
जज़्बातों को आँखों से ना छुपा पाओगी |
फासला कितना ही रखा करो
खुशबू हवाओं से कैसे बचाओगी |
हवा मे खामोश खुमारी बहुत है
ना चाहो तो भी बहक जाओगी |
कोशिश तुम कर लो जितनी
रेत पर वक्त के निशाँ ना मिटा पाओगी |
टंगे हें जो हसीन लम्हे शाखों पर
उन्हे क्या कभी तोड़ पाओगी ?
कल का बरसा सावन अटका है पेड़ों पे
कर लो कोशिश पर भीग ही जाओगी |
अक्स तुम्हारा जो देखा था अरसा पहले
उसे मिटा भी तुम कहाँ पाओगी |
बिल्कुल जरूरी नहीं, तुम साथ ही चलो
यादों की गलीयों में कहीं मिल ही जाओगी |
खुदी हो मेरे हाथ की लकीरों में
नसीब को कहाँ बदल पाओगी |
घुली हो वजूद में एक ख्याल की तरह
अब कहाँ ही निकल पाओगी |
जरूरी नहीं कि तुम याद करो
मुझे भुला भी कहाँ पाओगी |
[मनोज मित्तल , नोएडा, 5 नवंबर 2024]

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