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बड़े दिनों बाद

  • Writer: Manoj  Mittal
    Manoj Mittal
  • Mar 23, 2014
  • 2 min read

Updated: Dec 6, 2024

आज बड़े दिनों बाद यूँ ही खाली बैठा हूँ और वेब पर हिंदी में टाइप करना सीखा हैं| नया नया शौक लगा हें| लिखलिख कर ट्विटर,फेसबुक और अन्य सोशल साइट्स पर पोस्ट कर रहा हूँ| तो सोचा ब्लॉग पर भी हिंदी में पोस्ट करूँ| सुबह के तीन-चार घंटे गौशाला में बीत गए| लौटकर  आया तो हिंदी टाइप सीखी और लिखने बैठ गया| आज मोर्निंग वाक पर भी नहीं गया | अब तीन बज गए हैं और में नहाया भी नहीं हूँ| लकिन लिखेने में मजा बड़ा आ रहा हैं| सोचता हूँ अब शाम को ही नहाऊंगा, तब तक कुछ लिख ही लेता हूँ| घर पर भी कोई नहीं हैं| बच्चे हॉस्टल में हैं, भारती मार्किट गयी हे और में अकेला हूँ| मौसम आज अचानक बदल गया हे | बादल हें और बूंदा बांदी है| मार्च का महिना समाप्ति पर है गर्मीं भी लगभग आ ही गयी है पर ऐसे में बारिश लौट लौट कर आ रही हे | लगता हैं जैसे बारिस भी इस बार बहुत ढीट हो गयी है| बाहर पेड़ों कें पत्ते टूट टूट कट ज़मीं पर फैले हैं| मेरें घर कें एकदम सामने एक नीम, एक गुलमोहर, एक अमलतास, और एक जकरांदा का पेड़ हें| सामने ही पार्क हैं, उसमें भी बहुत से पेड़ हैं | आजकल के मौसम में जरा सी भी हवा चलती हे तो पेड़ो के पत्ते सारी सड़क और पार्क में बिछ जाते हैं| सुबह सुबह जब में पार्क में वाक करने जाता हूँ तो उन पत्तो के बीच रास्ता बना कर चलने में बड़ा मज़ा आता है| हवा से पत्तो की सरसराहट और पैरों के नीचे आते पत्तों की आवाज बेहद अच्छी लगती हें| दोपहर में अगर तेज हवा चले तो पत्ते उड़कर एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाते हें , पर अक्सर सुबह जमादार झाड़ू लगा कर सड़क साफ़ कर देता हें और पत्ते इकठा कर के आग लगा देता है|  क्या कहूँ एक तो आग लगा कर प्रदुषण करता है और एक सुंदर अहसास से मुझे वंचित कर देता हैं| सोचता कल सुबह वोह न ही आये तो अच्छा हैं|  मुझे नहीं लगता लोग मेरी इस बात से सहमत होंगे- पर में तो में हूँ और यह मेरा बेतरतीब विचार हें|



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