जीवन चक्र भी बहुत अजीब होता है और ऐसा भी नहीं की सबका एक जैसा होता है|हर वयक्ति का चक्र समय, प्राथमिकताओं ,पारिवारिक,वयवसायिक व सामाजिक परिस्थितियो के अनुसार अलग ही होता है| जिंदगी शायद इन सबके बीच समन्वय बनाने की एक कश्मकश ही है| भावनाएं और संवेदनाए तो सभी इंसानों में होती ही हैं| हाँ, हर कोई ठीक से व्यक्त नहीं कर पाता है| जैसे जैसे हम असली दुनिया की रोजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त होते जाते हैं वैसे वैसे ही जीवन के कोलाहल मे हमे अक्सर अपनी ही संवेदनाएं ठीक से सुनायी नहीं देती हैं |वो होती तो हैं पर कहीं अंदर दब सी जाती हैं |वो बहुत भाग्यशाली होते हैं जो हमेशा उनको ज़िंदा रखते हैं और व्यक्त भी कर पातें हैं | शायद में उतना भाग्यशाली नहीं हूँ| एक वक्त था जब मन स्वछन्द था.. कल्पनाशील था.. आदर्शवादी था .. और बहुत निडर था.. | आज भी है पर शायद उतना नहीं या फिर प्राथमिकताए थोड़ी बदल गई हैं |मुझको तो लगता है कि बिनावजह की व्यस्तता का आवरण ढककर हम अपने मन की संवेदनशीलता को दबाने का ही अनर्थक प्रयास करते हैं |वास्तव में उसके बिना मन खाली खाली और जीवन अपूर्ण लगता है| आज मन की उड़ान मुझे कुछ पुराने समय मे ले गई| कुछ बीते पल, पुरानी बातें व धुँधलाते चेहेरे मन के आईने में दस्तक देने का प्रयास करने लगे| अनजाने में ही अपने से ये वायदा भी कर लिया कि अपनी इस जीवन संजीवनी को जीवंत रखना है|अतीत की पुरानी किताब का एक पन्ना जिसे मैने लगभग तीस साल पहले लिखा था वो आज यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ|शायद पसंद आये|
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